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------------- जयपुर धार्मिक स्थल -------------
मोती डूंगरी मंदिर जयपुर के सबसे बड़े गणेश मंदिरों में से एक है। मंदिर में रोजाना हजारों भक्त आते हैं। आंकड़ों के मुताबिक हर साल लगभग 1.25 लाख श्रद्धालु मंदिर आते हैं। हिंदू धर्म के अनुसारए भगवान गणेश बुध के देवता हैंए इसलिए हर बुधवार का दिन मंदिर परिसर के अंदर एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
मंदिर परिसर में एक शिव लिंग भी है जो महा शिवरात्रि की रात को खुलता है। जो मंदिर को अद्वितीय बनाता है क्योंकि यह भारत का एकमात्र गणेश मंदिर है जिसे भगवान शिव के भक्तो द्वारा देखा जाता हैं। मंदिर के दक्षिणी भाग में एक छोटी पहाड़ी पर लक्ष्मी और नारायण को समर्पित एक मंदिर भी मौजूद है। जिसे “बिड़ला मंदिर” नाम दिया गया है।
गणेश जी को सिंदूर का चोला चढ़ाकर लड्डू का भोग लगाया जाता है। यहां पर नए वाहनों की पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से गाड़ियों को घटना नहीं होती है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, रामनवमी, धनतेरस और दीपावली के दिन नए गाड़ियों की पूजा के लिए काफी भीड़ लगी होती है। गणेश जी के मंदिर में हर बुधवार को सबसे ज्यादा भीड़ होती है और इस दिन भी बहुत सारे नए वाहनों की पूजा की जाती है। मंदिर में दूर दूर से श्रद्धालु अपने वाहनों की पूजा के लिए आते हैं।
बिरला मंदिर को लक्ष्मी नायायण मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि यह मंदिर भगवान विष्णु (नारायण) उनकी पत्नी धन की देवी लक्ष्मी को समर्पित है। पत्थर के एक टुकड़े से उकेरे गए लक्ष्मी नारायण देवता का विशेष ध्यान जाता है। इन सभी मूर्तियों के अलावा इस मंदिर में गणेश की मूर्ति भी है जो पारदर्शी दिखाई देती है। बिरला मंदिर का निर्माण 1988 में बिरला द्वारा किया गया थाए जब जयपुर के महाराजा ने एक रुपये की टोकन राशि के लिए जमीन दे दी थी। सफेद संगमरमर से निर्मित बिड़ला मंदिर की संरचना में आप प्राचीन हिंदू वास्तुकला शैली और आधुनिक डिजाइन का मेल देख सकते हैं। इस मंदिर की दीवारों को देवी देवताओं की गहन नक्काशी, पुराणों और उपनिषदों के ज्ञान भरे शब्दों से सजाया गया है।
जन्माष्टमी के त्यौहार को बिड़ला मंदिर में बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस खास मौके को चमचमाती रोशनी और तेल के दीपक के साथ सजाया जाता है। इस दिन भारी संख्या में पर्यटक भगवान कृष्ण का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।
जयपुर शहर में अरावली पर्वतमाला पर स्थित देश का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां बिना सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमा है। यह मंदिर गढ़ गणेश के नाम से विख्यात है। बताया जाता है कि सवाई जयसिंह ने 18वीं शताब्दी में जयपुर की स्थापना के लिए गुजरात के विशेष पंडितों को यहां बुलाकर अश्वमेध यज्ञ करवाया था। जयपुर की नींव रखते वक्त बालरूप गणेश जी की विग्रह प्रतिमा बनाकर पूजन किया गया था। उन्हीं गणपति की प्रतिमा को शहर की उत्तरी दिशा में अरावली की पहाड़ी पर किला (गढ़) बनाकर विराजमान करवाया गया। सवाई जयसिंह और यज्ञ करवाने वाले पुरोहितों का मानना था कि इससे भगवान श्रीगणेश की निगाह पूरे शहर पर बनी रहेगी। उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा।
करीब 500 फीट की ऊंचाई पर बने गढ़ गणेश मंदिर तक पहुंचने के लिए हर रोज एक सीढ़ी का निर्माण करवाया जाता था। इस तरह पूरे 365 दिन तक एक एक सीढ़ी का निर्माण चलता रहा।अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दूर दूर से सैकड़ों श्रद्धालु 365 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक पहुंचकर बिना सूंड वाले बाल रूप श्रीगणेश के दर्शन करते हैं।
काले हनुमान जी मंदिर जयपुर में हवा महल के पास स्थित है। यह भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है जिसे 1000 साल पहले बनाया गया था। यह मंदिर महाबजरंग बलि हनुमान जी के नाम से प्रसिद्ध है,जो रंग में काला है इस मंदिर में स्थापित महाबजरंगबलि हनुमान जी भगवान राम के पार्टी अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। हनुमान जी की मूर्ति या तो नारंगी या लाल रंग में होती है हालांकि काले हनुमानजी अपने अद्वितीय रंग देवता के लिए विश्वव्यापी प्रसिद्ध हैं।
इस मंदिर के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह भक्तों को आध्यात्मिक और धार्मिक अनुभव प्रदान करता है। जो लोग बीमारियों से पीड़ित हैं वे स्वास्थ्य, धन और ज्ञान हासिल करने के लिए विशेष हनुमानजी मंत्र का जप करने के लिए यहाँ आते हैं । यह मंदिर न केवल पर्यटक बिंदु या गंतव्य के रूप में बहुत प्रसिद्ध और प्रमुख है बल्कि इसकी प्राचीन लोकप्रियता और भारतीय परंपरा के लिए भी प्रसिद्ध है।
गोविंद देवजी मंदिर वास्तुकला की प्रतिभा से कहीं अधिक हैय यह भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक आश्रय स्थल है। मंदिर के मध्य में गोविंद देवजी के रूप में भगवान कृष्ण की मूर्ति है। ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति भगवान कृष्ण के मूल रूप से काफी मिलती जुलती है, जिससे यह पूजा की एक पवित्र और पूजनीय वस्तु बन जाती है।
गोविंद जी का मंदिर बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना है जिसकी छत सोने से ढकी है। मंदिर की इमारत की वास्तुकला में राजस्थानीए मुस्लिम और साथ ही शास्त्रीय भारतीय तत्वों का मिश्रण है। चूंकि यह एक शाही निवास के बगल में बनाया गया था, इसलिए दीवारों को झूमरों के साथ साथ चित्रों से सजाया गया है। मंदिर भी एक हरे भरे बगीचे से घिरा हुआ है और बगीचे को “तालकतोरा” नाम से जाना जाता है और यह बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त है।