अग्रवाल समाज के संगठनों की स्मारिकाओ व सामाजिक पत्र-पत्रिकाओंओं के अनुसार इस समाज
की कुलदेवी “महालक्ष्मी” हैं। जात, जड़ूला आदि कार्य शक्तिपीठों पर सम्पन्न किये जाते
हैं।कुछ गोत्रों में वंशानुगत “शक्तिदादी” को पूजने की मान्यता है।
ऐसी मान्यता है कि प्राचीन समय में प्रताप नगर का राजा धनपाल बड़ा प्रतापी शासक हुआ
। उसके वंशजराजा अग्रसेन दिल्ली के स्वामी बनेने । इन्होंने आगरा और अग्रौहा शहर अपने
नाम से बसाये । उस समय पंगन के शासक राजा कुमद की अत्यन्त सुन्दर नागकन्या माधवी से
उनका विवाह हुआ जिस पर इन्द्रक्रोधित हो उठे उन्होंने पृथ्वी पर भयंकर अकाल की स्थिति
उत्पन्न कर दी लेकिन राजा अग्रसेन ने उनके सभी प्रयास विफल कर दिए ।
कालान्तर में अपना राज्य कार्य अपनी पटरानी माधवी को सौपकर राजा अग्रसेन एकान्तवास
वन में रहकर तपस्या करने लगे । कड़ी तपस्या के बाद महादेव उनसे प्रसन्न हुए और वर मांगने
को कहा इस पर अग्रसेन ने कहा ’मुझे वरदान दीजिये कि देवराज इन्द्र मेरे अधीन रहे’ ।
महादेव ने यही वर देते हुए कहा कि अब तुम महालक्ष्मी की पूजा करो जिससे तुम्हारा भण्डार
धन से पूर्ण रहेगा साथ ही इन्द्र भी तुम्हारे अधीन रहेगा ।
इस पर अग्रसेन ने महालक्ष्मी का जाप किया देवी ने प्रसन्न होकर उसे कहा कि अब तुम कोल्हापुपुर
नगर जाओ वहाँ महीधर नामक राजा ने नागकन्या का स्वयंवर रचाया है उस कन्या से विवाह कर
अपना वंश चलाओ । इस पर उन्होंने सत्रह नाग कन्याओं के साथ विवाह किया । अग्रसेन के
बढ़ते प्रभाव से इन्द्र घबरा गया उसने नारद मुनि के साथ मधुशालिनी नाम की अपनी अप्सरा
भेजकर राजा से मित्रता कर ली ।